आपदायें और आपदा प्रबंधन के उपाय
🛑सारांश ⬇️
जब प्रकृति में असंतुलन की स्थिति होती है, तब आपदायें आती हैं जिसके कारण विकास एवं प्रगति बाधक होती है। प्राकृतिक आपदाओं के अतिरिक्त कुछ विपत्तियाँ मानवजनित भी होती हैं। प्राकृतिक आपदायें जैसे- भूकम्प, सुनामी, भूस्खलन, ज्वालामुखी, सूखा, बाढ़, हिमखण्डों का पिघलना आदि हैं। धैर्य, विवेक, परस्पर सहयोग व प्रबंधन से ही इन आपदाओं से पार पाया जा सकता है। आपदा प्रबंधन दो प्रकार से किया जाता है आपदा से पूर्व एवं आपदा के पश्चात।
🛑भारत की प्राकृतिक संरचना ⬇️
भारत की प्राकृतिक संरचना में पर्वतों, नदियों, समुद्रों आदि का बहुत महत्त्व है। इनसे असंख्य लोगों की आजीविका चलती है। लेकिन जब प्रकृति में असंतुलन की स्थिति होती है, तब आपदायें आती हैं इनके आने से प्रगति बाधित होती है और परिश्रम तथा यत्न पूर्वक किये गये विकास कार्य नष्ट हो जाते हैं। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार जब ग्रह बुरी स्थिति में होते हैं तब आपदायें आती हैं धर्म शास्त्र के अनुसार जब पाप बढ़ जाते हैं तब पृथ्वी पर आपदायें आती हैं इन आपदाओं में बाढ़, चक्रवात, बवन्डर, भूकम्प, भूस्खलन, सुनामी, सूखा, ज्वालामुखी विस्फोट, दावानल, टिट्डी दल का हमला, महामारी, समुद्री तूफान, गर्म हवाएँ और शीतलहर आदि इन प्राकृतिक आपदाओं के अतिरिक्त कुछ मानव जनित आपदायें हैं जैसे साम्प्रदायिक दंगे, आतंकवाद आगजनी, शरणार्थी समस्यायें, वायु, रेल व सड़क दुर्घटनाएँ आदि हैं। इसके अतिरिक्त भी अनेक प्रकार की आपदायें हैं जो मानव जीवन को तहस नहस कर देती हैं। भारत में 1980 से 2010 के बीच में समुचित आपदाओं में सूखा 7 बार, भूकम्प 16 बार, महामारी 56 बार, अत्यधिक गर्मी 38 बार, बाढ़ 184 बार, कीट संक्रमण 1 बार, बड़े पैमाने पर सूखा 34 बार, तूफान 92 बार, ज्वालामुखी 2 बार आ चुके हैं। जिनसे जन-जीवन अस्त-व्यस्त हुआ और बहुत बड़ी आर्थिक और जन-जीवन की हानि हुयी।
🛑भूकम्प ⬇️
भूकम्प प्राकृतिक आपदा के सर्वाधिक विनाशकारी रूपों में से एक है, जिसके कारण व्यापक तबाही हो सकती है। भूकम्प का साधारण अर्थ है ‘‘भूमि का कम्पन’’ अर्थात भूमि का हिलना।
🛑भूस्खलन ⬇️
भूस्खलन भी एक प्राकृतिक घटना है भूस्खलन भूमि उपयोग को सीधा प्रभावित करता है। प्रायः पर्वतीय भागों जैसे भारत के हिमालयी पर्वत के ढालू भागों में घटती है। चट्टानों का नीचे खिसकना भूस्खलन कहलाता है।
🛑सुनामी आपदा ⬇️
सुनामी दो शब्दों से मिलकर बना है TSU का अर्थ है बन्दरगाह और NAMI का अर्थ है लहरें। इसे ज्वारीय या भूकम्पीय लहरें भी कहते हैं।
🛑आपदा प्रबंधन ⬇️
आपदा प्रबंधन के दो विभिन्न एवं महत्त्वपूर्ण पहलू हैं। आपदा पूर्व व आपदा पश्चात का प्रबंधन। आपदा पूर्व प्रबन्धन को जोखिम प्रबन्धन के नाम से भी जाना जाता है। आपदा के जोखिम भयंकरता व संवेदनशीलता के संगम से पैदा होते हैं जो मौसमी विविधता व समय के साथ बदलता रहता है। जोखिम प्रबन्धन के तीन अंग हैं। जोखिम की पहचान, जोखिम में कमी व जोखिम का स्थानान्तरण किसी भी आपदा के जोखिम को प्रबन्धित करने के लिये एक प्रभावकारी रणनीति की शुरूआत जोखिम की पहचान से ही होती है। इसमें प्रकृति ज्ञान और बहुत सीमा तक उसमें जोखिम के बारे में सूचना शामिल होती है। इसमें विशेष स्थान के प्राकृतिक वातावरण के बारे में जानकारी के अलावा वहाँ आ सकने का पूर्व निर्धारण शामिल है। इस प्रकार एक उचित निर्णय लिया जा सकता है कि कहाँ व कितना निवेश करना है। एक ऐसी परियोजना को डिज़ाइन करने में मदद मिल सकती है। जो आपदाओं के गम्भीर प्रभाव के सामने स्थिर रह सकें। अतः जोखिम प्रबन्धन में व इससे जुड़े पेशेवरों का कार्य जोखिम क्षेत्रों का पुर्वानुमान लगाना व उसके खतरे के निर्धारण का प्रयास करना तथा उसके अनुसार सावधानी बरतना, मानव संसाधन व वित्त जुटाना व अन्य आपदा प्रबन्धन के इस उपशाखा का ही अंग है।
🛑आपदा प्रबन्धन कई स्तर पर होते हैं ⬇️
1.केन्द्रीय स्तर पर आपदा प्रबन्धन
2.राज्य स्तर पर आपदा प्रबन्धन
3.जिलास्तर पर आपदा प्रबन्धन
🛑आपदा प्रबन्धन में महत्त्वपूर्ण क्षेत्र ⬇️
1. संचार
2. सुदूर संवेदन
3. भौगोलिक सूचना प्रणाली
🛑आपदा प्रबंध को रोकने के लिए संत रामपाल जी महाराज के द्वारा किए गए प्रयास ⬇️
हमारे सभी पवित्र धर्म शास्त्रों के अनुसार जब पृथ्वी पर पाप बढ़ जाते हैं तब आपदा आती है, क्योंकि परमात्मा प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने के लिए ऐसी लीलाये करते हैं, और यह स्थिति तब बनती है जब संपूर्ण विश्व के लोग नास्तिक होते चले जाते हैं तथा वह भगवान को नहीं मानते क्योंकि वह अपने अहमवस भौतिकतावादी सुख सुविधाओं तथा अपने खोजों को महत्व देने लगते है, तथा वे भगवान के अस्तित्व को नकार देते हैं इससे प्राकृतिक आपदाएं जैसी समस्या उत्पन्न होती है। इससे बचने के लिए पूर्ण परमात्मा कबीर साहिब संत रामपाल जी महाराज के रूप में पृथ्वी पर आए हुए हैं उनके द्वारा कई प्रयास किए जा रहे हैं और मानव समाज को इन आपदाओं से बचाने का प्रयास किया जा रहा है इसमें उन्होंने भ्रष्टाचार रिश्वत दहेज मुक्त भारत आदि कार्यक्रम प्रारंभ किए हैं वह धरती पर इन सभी समस्याओं का समाधान करके धरती को स्वर्ग के समान बनाना चाहते हैं। तथा पुन: एक बार सत्युग जैसा माहौल लाना चाहते हैं ।
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