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Supreme God in Holy Book Guru Granth Sahib (Sikhism)

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 Spiritual Leader Saint Rampal Ji The light has come to clear the darkness about the Supreme God, the father of all souls, which we address as immortal and almighty god. The secret information about supreme God has been showcased via this article, and the information has been taken from the holy book, "Shri Guru Granth Sahib" (Sikhism). Here is a list of some important questions about Sikhism or Sikh religion, which you must know. ■ What is Sikhism? (Brief History & Information about Sikh Religion). ■ Where do Sikhs worship? ■ List of the Ten Sikh Gurus ■ What text do Sikhs follow and where did it come from? ■ Who are Sikhs?   ■ How do Sikhs view God? ■ God’s names in Sikhism. ■ Do Sikhs believe in God? ■ Do Sikhs believe in heaven or hell? ■ Why don’t Sikhs cut their hair? ■ Who is ‘Waheguru’ or God in Sikhism? ■ Guru of Nanak Dev Ji. What is Sikhism? (Brief History & Information about Sikh Religion) Let’s discuss about history and gain information about Sikh religio

मांस खाना पाप है :-

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एक समय एक संत अपने शिष्य के साथ कहीं जा रहा था। वहाँ पर एक मछियारा तालाब से मच्छलियाँ पकड़ रहा था। मच्छलियाँ जल से बाहर तड़फ-2 कर प्राण त्याग रही थी। शिष्य ने पूछा हे गुरुदेव! इस अपराधी प्राणी को क्या दण्ड मिलेगा ? गुरुजी ने कहा बेटा! समय आने पर बताऊँगा।  चार-पांच वर्ष के पश्चात् दोनों गुरु शिष्य कहीं जाने के लिए जंगल से गुजर रहे थे। वहां पर एक हाथी का बच्चा चिल्ला रहा था। उछल कूद करते समय हाथी का बच्चा दो निकट-2 उगे वृक्षों के बीच में फंस गया वह निकल तो गया परन्तु निकलने के प्रयत्न में उसका सर्व शरीर छिल गया था तथा उसके शरीर में जख्म हो गए थे।  उसके सारे शरीर में कीड़े चल रहे थे। जो उसको नोच रहे थे। वह हाथी का बच्चा बुरी तरह चिल्ला रहा था। शिष्य ने गुरु जी से पूछा कि हे गुरुदेव! यह प्राणी कौन से पाप का दण्ड भोग रहा है। गुरुदेव ने कहा पुत्र यह वही मच्छियारा है जो उस शहर के बाहर जलास्य से मच्छलियाँ निकाल रहा था।

मदिरा (शराब) पीना कितना पाप है :-

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  शराब पीने वाले को सत्तर जन्म कुत्ते के भोगने पड़ते है । मल-मूत्रा खाता-पीता फिरता है। अन्य कष्ट भी बहुत सारे भोगने पड़ते हैं तथा शराब शरीर में भी बहुत हानि करती है। शरीर के चार महत्वपूर्ण अंग होते हैं। फेफड़े, लीवर, गुर्दे तथा हृदय । शराब इन चारों को क्षति पहुँचाती है।  शराब पीकर मानव, मानव न रह कर पशु तुल्य गतिविधि करने लगता है। कीचड़ में गिर जाना, कपड़ों में मलमूत्रा तथा वमन कर देना। धन हानि, मान हानि, घर में अशांति आदि मदिरा पान के कारण होते है। मदिरा सत्ययुग में प्रयोग नहीं होती । सत्ययुग में सर्व मानव परमात्मा के विद्यान से परिचित होते हैं। जिस कारण सुख का जीवन व्यतीत करते हैं। गरीब : मदिरा पीवै कड़वा पानी, सत्तर जन्म स्वान के जानी।

"श्रीमद् भगवद् गीता सार"

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परमेश्वर की खोज में आत्मा युगों से लगी है। जैसे प्यासे को जल की चाह होती है। जीवात्मा परमात्मा से बिछुड़ने के पश्चात् महा कष्ट झेल रही है। जो सुख पूर्ण ब्रह्म (सतपुरुष) के सतलोक (ऋतधाम) में था, वह सुख यहाँ काल (ब्रह्म) प्रभु के लोक में नहीं है। चाहे कोई करोड़पति है, चाहे पृथ्वीपति(सर्व पृथ्वी का राजा) है, चाहे सुरपति(स्वर्ग का राजा इन्द्र) है, चाहे श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शिव त्रिलोकपति हैं। क्योंकि जन्म तथा मृत्यु तथा किये कर्म का भोग अवश्य ही प्राप्त होता है (प्रमाण गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5)। इसीलिए पवित्रा श्रीमद् भगवद् गीता के ज्ञान दाता प्रभु (काल भगवान) ने अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 तथा अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है कि अर्जुन सर्व भाव से उस परमेश्वर की शरण में जा। उसकी कृपा से ही तू परम शांति को तथा सतलोक (शाश्वतम् स्थानम्) को प्राप्त होगा। उस परमेश्वर के तत्व ज्ञान व भक्ति मार्ग को मैं (गीता ज्ञान दाता) नहीं जानता। उस तत्व ज्ञान को तत्वदर्शी संतों के पास जा कर उनको दण्डवत प्रणाम कर तथा विनम्र भाव से प्रश्न कर, तब वे तत्वदृष्टा संत आपको परमेश्